Sunday, December 1, 2019

हवस का शिकार

जब वह हवस का शिकार हुई,
जब उसकी इज्जत तार-तार हुई,

उसकी दशा दयनीय थी,
आंखे बह रही थी,
वह खामोश थी मगर
उसकी सिसकियाँ कह रही थी,

क्या मै वासना तृप्ति की मशीन हूँ?
मैं पवित्र होकर भी क्यूँ अपवित्रता के अधीन हूँ?

यह मेरी गरिमा जो आज चूर-चूर है,
यह मेरे सृजनेवाले का कसूर है,

मुझे अफसोस है कि मै उपभोग की
सामग्री हूँ,
मुझे अफसोस है कि मै एक स्त्री हूँ,

कल तक तो मै शालीन थी,
आज कालीन बन गयी?
मेरी दृष्टि मे मै अब भी चरित्रवान हूँ,
मगर समाज के लिए चरित्रहीन बन गयी?

क्षमताओं से पूर्ण स्त्री,
फिर लाचार बनकर रह गयी,
उसकी लूटी इज्जत,
मिडिया का समाचार बनकर रह गयी,

कब तक हाथ बांधकर बैठे रहोगे?
कल तुम्हारी दुर्गति भी हो सकती है,
कब तक बचे रहोगे?
कल मेरी जगह तुम्हारी बेटी भी हो सकती है.......

(हूक  written by Manvati Anand Sharma)